प्रभात किरणों तारावलियोंकी
झंकार हो,
विविध स्वर - सरगम,
राग - अनुराग से भरे
गीतों की स्वर लहरियों की,
तरंग हरे,
संघर्ष - कथाओं
प्रेम भरी विपदाओं में,
संस्कृतियों के बनते - बिगड़ते
संदर्भो में-
संवेदनाओं का द्वार हो!
शहर की अट्टालिकाओं के बीच
राजपथ पर
आशाओं भरी तारोंकी
स्वप्नवेलियों के लिए
समय की पुकार हो!
किन्तु-
जंझावत के पागल अट्टहास में
प्रतिवर्ष १४ सितम्बर को तुम्हारी
सवेंदनाओं को झकझोर
जाता हे
बार- बार
तुम्हारे पास !
शब्दों के हर मोड़ पर
सपने को सुरक्षित
रखने के लिए
कोई कवच नहीं,
तुमने
कहाँ कितना खोया,
कहाँ कितना पाया,
कैसे कितना गवाया,
कैसे कितना बचाया,
कहाँ किस बंजर - मारी में
प्राण बीज के उत्स से
उन्हें सींचा
किन्तु कैसे कहोगे ?
हिंदी !
तुमने-
जगती के भावों को
सुखानुभूति के गीतों से
सूर, तुलसी , बिहारी के छंदों में
गिरे अर्थ - वीथिका में
ह्रदय के समूचे प्यार से
|
नए - नए गीत छंदों से
सजाया था उन्हें
सप्त स्वरों के सात फेरों से
सपनों के मधुकलश को
म्रदुल और आत्मीय क्षणों को
भग्नाशेष में
स्मृतियों की बाहों में भींच
वर्षांत मेघों में
उमड़ते - उमड़ते
यक्षप्रियों के अभिसार को
अट्ठारह घोड़ों के रथ पर सवार
देखा था !
किन्तु-
स्वप्न कलश के बिखरे
टुकड़ों से खंडित
हिंदी ! तुम मेघदूत बन
यक्षच्छाया न पा सकी !
तुम मेघदूत बन
यक्षच्छाया न पा सकी !
तुम !
प्रवनामय अतीत के
दर्पण के टूटने के झंकार से
अस्तित्व - रंगमंच पर
अन्तरंग - व्यथा कथा को
समेटे -
किसी कामदेव हाथों
छली गयी
प्रभात किरणों के तारवालियों के
टूटने से,
स्वर - सरगम की झंकृति में
सवेंदनाओ के ममहित दंश
राजपथ पर
शकुन्तला - सी वल्कलधारिणी
राजेश्वर दुष्यंत से
अपमानित , उपहासित
परितिक्यता
तिरस्कार से जूझ रही हो लगातार !
मेरी सहचरी हिंदी !
पारदर्शी शब्दों के अर्थ से
तुम्हे
जमीन से जमीन को जोड़ना है !
जनारण्य में-
विस्मृति की तन्द्रा को
|
झांड़ - पोछकर
खोजना हैं - नए सन्दर्भों की !
बासुरी के सुर में
कृष्ण की राधा बन
सवेंदनाओं में -
प्रेम के पथ को ढूँढना है ,
कुरुक्षेत्र में
पांचजन्य बन को गूंजना हे !
सदभावना मंदिर के
शिखर का स्वर्ण कलश
तुळसींचौरे का जला दीप
संस्कृति वन में
अपनत्व - विहगों के
कल - कूजन के चारूत्व से
संकल्पित
स्वप्न - श्रेयर
प्रारम्भ के जागरण की
निसग - प्रदत्त रेखाओं के
सुर्योदायी प्रभा में
पाद आवेष्टि पायलो की रणन
कोमल कलाईयों
इन्द्रधनुषी चूड़ियों की खनक लेकर
स्वाति की आशा में
त्रशादग्ध चातक की
आर्त पिपासा में-
स्वर्ण - घट भर
सूर्यकन्याओं के लोटने तक
क्षितिज पनघट पर
सदियों से रीति
सवेंदन धाराओं में
अक्षोहिणी स्रोस्विनी की
सरस्वती धीरा बनकर
बहना है !
युगों - प्यासी
वेदना बिगलित
धरती के विषाद में उत्स ढूंढती
धारा बनकर बहना है!
हिंदी ! तुम्हे
गीतों की स्वर लहरी में
धारा बनकर बहना है!
हिंदी ! तुम्हे
गीतों की स्वर लहरी में
धारा बनकर बहना हे ! |