नारी,
तुमने क्या पाया हैं
नर से !
कब तुमारी प्रतीक्षा का
होगा अवसान !
अंधेरे पथ पर
अनजान राहों की
मर्मव्यथा को
यूँ सहती हुई
कब तक नारी
यूँ मौन रहेगी !
तुम्हे
मौन तोड़ना |
पड़ेगा
किसी दिन तुम्हे-
बोलना पड़ेगा !
विजय-पथ के,
हर शूल को
स्वरों का श्रृंगार
देना होगा !
मोह के बंधन को
नियति से बांधना होगा !
किसी दिन
मौन तोड़,
तुम्हे बोलना पड़ेगा ! |
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