शिक्षक तुम सूर्य हो !
अपनी उषा-रश्मियों की
बसंती प्रकाश से
देते हो
अनिन्ध सौन्दर्य
शिशु बालक को !
शिक्षक तुम सूर्य हो !
अपने हेमकुंड में
महासागर की विशालता से
बादलों की काया से
स्याह - श्वेत कपोतो की तरह
उड़ाते हो बादल - दिन-रात
और भरते हो
आपने मानस - पुत्रों में
बसंत वर्षा का हर्ष
स्रष्टि विधायिनी प्रकृति को देते हो
पराग अनुरंजित पुष्प रंगोली
भद्रपुरुष की प्रकृति
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रंगीन पंखो के परिधानी
महंत जीवन की कल्पना
भरते हो
अपने मानस- पुत्रों में !
शिक्षक तुम सूर्य हो !
दिनमान बनकर
अतल गहराई की
गहरियता में
इन्द्रधनुषी रंग से
अंतरंगी आत्मीयता की
नव भाषा !
तुम्हारे शब्द - बीज से
हारता रहता है !
वेदों की श्रचाओं का
सार्वभौम सत्य
शास्वत जीवन का कोई अर्थ !
वसुधा के वक्ष -प्रष्ट पर
लिखने के लिए
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तुम गढ़ते हो !
अपने सांझ की स्नेहिल
अपने सांझ की स्नेहिल
सुगंध से ममतामयी
उन्मुक्त बाँहों के स्पर्श से
उद्दिग्न विपन्न बालक को
देते हो !
सुदढ़ रसाल का एक -एक पात !
छिन्न-भिन्न उजढ़े हुओं को
सरस रसीले अभिनव नवल -गात !
अपने तप: तेजपूरित
तन्मयता से
पीड़ा की बंधी ग्रंथियों को
खोल देते हो बालक को
उन्मुक्त वातास
शिक्षक तुम सूर्य हो !
शिक्षक तुम सूर्य हो !
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