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 कविताएँ

  • हिंदी तुम
  • घर की तलाश
  • फागुनी रंग
  • नारी एक प्रतीक्षा
  • शिक्षक तुम सूर्य हो
  • एक नए भोर की कविता
  • कौरवी सदी
  • उद्जन बम
  • दीवारों की मूक - व्यथा
  • मन एक परिचय

आलेख

  • सम्रद्ध विरासत समेटे हैं नसीराबाद
  • "सूर्य पथ से" का मूल स्वर राष्ट्रीय चेतना
  • अत्यधिक ...............
 

हिंदी ! तुम

 

Arhitectural प्रभात किरणों तारावलियोंकी
झंकार हो,
विविध स्वर - सरगम,
राग - अनुराग से भरे
गीतों की स्वर लहरियों की,
तरंग हरे,
संघर्ष - कथाओं
प्रेम भरी विपदाओं में,
संस्कृतियों के बनते - बिगड़ते!
................... विस्तार पूर्वक ...

घर की तलाश

 

Arhitectural घर की तलाश में
एक झूठा तिलिस्म
मिलता है
सीमेंट - बालू के समीकरण से बने
सिर पर केवल
अहसासों की एक छत
जिसमें
यात्राओं के लम्बे
भयानक दौरे में...................
विस्तार पूर्वक ...

फाल्गुनी रंग

 

Arhitectural आज
त्रष्णा के इस सफ़र में
देहयष्टि की गंध
मन की गंध
निश्वास में भर देती है
फाल्गुनी रंग !...................
विस्तार पूर्वक ...

नारी एक प्रतीक्षा

 

Arhitectural नारी,
तुमने क्या पाया हैं 
नर से !
कब तुमारी प्रतीक्षा का 
होगा अवसान !
अंधेरे पथ पर 
अनजान राहों की 
मर्मव्यथा को 
यूँ सहती हुई 
कब तक नारी 
यूँ मौन रहेगी ! ...................
विस्तार पूर्वक ...

शिक्षक तुम सूर्य हो !

 

Arhitectural शिक्षक तुम सूर्य हो !
अपनी उषा-रश्मियों की
बसंती प्रकाश से 
देते हो 
अनिन्ध सौन्दर्य 
शिशु बालक को !
शिक्षक तुम सूर्य हो !
अपने हेमकुंड में 
महासागर की विशालता से 
बादलों की काया से 
स्याह - श्वेत कपोतो की तरह  ..................
विस्तार पूर्वक ...

एक नए भोर की कविता

 

Arhitectural मित्र !
विरोध और अंतव्रिरोध की
तन्मयता में -
ध्वनी की गतिमयता हें 
यात्रापथ का सुदूर विस्तार हें,
जिसमें -
यत्र - तत्र ख़ूनी धब्बे हें !
हें मित्र !
इस तन्मयता और गतिमयता में
फैले हुए ख़ूनी धब्बों में
जीवन की बोझिलता हें ! ...................
विस्तार पूर्वक ...

कौरवी सदी

 

Arhitectural बूढे बरगद को देखो 
उसकी करुण कथा में 
लिखा हैं -
सदियाँ का इतिहास ,
वेगवती धारा में 
नदियों का संन्यास ,
हर पृष्ट पर छपा -
शाकुंतलम का परिहास ,
शम्भुक वध की आड़ में
व्यवस्था का जंगल,
वेदों में संपूज्य 
अभागा विश्वास, ..................
. विस्तार पूर्वक ...

उद्जन बम !

 

Arhitectural उद्जन बम !
हे उद्जन 
तुम निंसंदेह हारे हुए
पथिक की विश्रान्ति हो !
हम सब खोखले इंसान हेँ !
शरीर में भूसा भरकर 
एक पंक्तिबद्द जनशून्यता में
मानवताहीन प्रश्नचिन्ह बन
खोपड़ियों में भूसा भरे हुए
अस्मिता को तोड़ने वाले 
उस क्लांति का तुम - ...................
विस्तार पूर्वक ...

दीवारों की मूक व्यथा

 

Arhitectural दीवारों की पर्त पर
पड़े हुए,
ये पलस्तर-
कहते हुए
आंकते हुए
दीवारों की मूक व्यथा को,
जो शायद
उन्हें,
समाज के ठेकेदारों से
मिली !..................
. विस्तार पूर्वक ...

मन एक परिचय

 

Arhitectural मन-
आत्मस्विकृति का परिचायक 
अतीत के कोरे कागज़ पर 
अंकित 
पुस्तक का पृष्ट हैं,
भविष्य में लिखा जाने वाला 
निर्भय हस्ताछर हैं,
चंचल मन 
खरल कि तरह 
वेदना- सवेंदनाओं कि राह में 
दर्द और भटकन को  ...................
विस्तार पूर्वक ...