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       हिंदी ! तुम 
  
          प्रभात किरणों तारावलियोंकी 
झंकार हो, 
विविध स्वर - सरगम, 
राग - अनुराग से भरे 
गीतों की स्वर लहरियों की, 
तरंग हरे, 
संघर्ष - कथाओं 
प्रेम भरी विपदाओं में, 
संस्कृतियों के बनते - बिगड़ते!................... विस्तार पूर्वक ...
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       घर की तलाश
  
          घर की तलाश में  
एक झूठा तिलिस्म  
मिलता है  
सीमेंट - बालू के समीकरण से बने  
सिर पर केवल  
अहसासों की एक छत  
जिसमें  
यात्राओं के लम्बे  
भयानक दौरे में................... विस्तार पूर्वक ...
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       फाल्गुनी रंग 
  
          आज  
  त्रष्णा के इस सफ़र में  
  देहयष्टि की गंध  
  मन की गंध  
  निश्वास में भर देती है  
  फाल्गुनी रंग !................... विस्तार पूर्वक ... 
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       नारी एक प्रतीक्षा
  
           नारी, 
  तुमने क्या पाया हैं  
  नर से ! 
  कब तुमारी प्रतीक्षा का  
  होगा अवसान ! 
  अंधेरे पथ पर  
  अनजान राहों की  
  मर्मव्यथा को  
  यूँ सहती हुई  
  कब तक नारी  
  यूँ मौन रहेगी ! ................... विस्तार पूर्वक ... 
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       शिक्षक तुम सूर्य हो !
  
           शिक्षक तुम सूर्य हो ! 
  अपनी उषा-रश्मियों की 
  बसंती प्रकाश से  
  देते हो  
  अनिन्ध सौन्दर्य  
  शिशु बालक को ! 
  शिक्षक तुम सूर्य हो ! 
  अपने हेमकुंड में  
  महासागर की विशालता से  
  बादलों की काया से  
  स्याह - श्वेत कपोतो की तरह  .................. विस्तार पूर्वक ... 
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       एक नए भोर की कविता 
  
           मित्र ! 
  विरोध और अंतव्रिरोध की 
  तन्मयता में - 
  ध्वनी की गतिमयता हें  
  यात्रापथ का सुदूर विस्तार हें, 
  जिसमें - 
  यत्र - तत्र ख़ूनी धब्बे हें ! 
  हें मित्र ! 
  इस तन्मयता और गतिमयता में 
  फैले हुए ख़ूनी धब्बों में 
  जीवन की बोझिलता हें ! ................... विस्तार पूर्वक ... 
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       कौरवी सदी
  
     बूढे बरगद को देखो  
  उसकी करुण कथा में  
  लिखा हैं - 
  सदियाँ का इतिहास , 
  वेगवती धारा में  
  नदियों का संन्यास , 
  हर पृष्ट पर छपा - 
  शाकुंतलम का परिहास , 
  शम्भुक वध की आड़ में 
  व्यवस्था का जंगल, 
  वेदों में संपूज्य  
  अभागा विश्वास,  ................... विस्तार पूर्वक ...
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       उद्जन बम !
  
           उद्जन बम ! 
  हे उद्जन  
  तुम निंसंदेह हारे हुए 
  पथिक की विश्रान्ति हो ! 
  हम सब खोखले इंसान हेँ ! 
  शरीर में भूसा भरकर  
  एक पंक्तिबद्द जनशून्यता में 
  मानवताहीन प्रश्नचिन्ह बन 
  खोपड़ियों में भूसा भरे हुए 
  अस्मिता को तोड़ने वाले  
  उस क्लांति का तुम - ................... विस्तार पूर्वक ... 
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       दीवारों की मूक व्यथा 
  
          दीवारों की पर्त  पर 
पड़े हुए, 
ये पलस्तर- 
कहते हुए 
आंकते हुए 
दीवारों की मूक व्यथा को, 
जो शायद  
उन्हें, 
समाज के ठेकेदारों से  
मिली !................... विस्तार पूर्वक ... 
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       मन एक परिचय 
  
           मन- 
  आत्मस्विकृति का परिचायक  
  अतीत के कोरे कागज़ पर  
  अंकित  
  पुस्तक का पृष्ट हैं, 
  भविष्य में लिखा जाने वाला  
  निर्भय हस्ताछर हैं, 
  चंचल मन  
  खरल कि तरह  
  वेदना- सवेंदनाओं कि राह में  
  दर्द और भटकन को  ................... विस्तार पूर्वक ... 
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