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कविता - 06

 

 

एक नए भोर की कविता
मित्र !
विरोध और अंतव्रिरोध की
तन्मयता में -
ध्वनी की गतिमयता हें
यात्रापथ का सुदूर विस्तार हें,
जिसमें -
यत्र - तत्र ख़ूनी धब्बे हें !
हें मित्र !
इस तन्मयता और गतिमयता में
फैले हुए ख़ूनी धब्बों में
जीवन की बोझिलता हें !
शायद
यह खून किसी हिन्दू का हें !
या इसाई का,
किसी सिक्ख का हें,
या किसी मुसलमान का !
यह खून -
किसी भाई का हें
यह जीवन का संघर्ष हें,
केवल संघर्ष !
हें मित्र !
लक्ष्य - संधान में
धारा- अंतधारा में,
बहते हुए नदी के वेग में
वर्ण-वर्ण,
व्यंजन व्यंजन
डाल - डाल
और -
पात- पात में,
कलि और रेशे में पारपरिक

गुजरती-
मानवीय संवेदनाओ का
खून हें !
सड़क पर पड़ी ,
कराहती मानवता
टिफिन - कैरियर में बंद ,
सड़ी - रोटी की गंध लिएये खून -
न किसी जाती का हें
न किसी वर्ण का हें
ये खून
आदमियत का खून हें !
केवल
आदमियत का खून हें
हे मित्र !
इन रक्त -सने कपड़ो,
टिफिन में पड़ी रोटी ,
टूटी साईंकिलें ,
फटे जूते और चिथड़े
लिबास पर -
ये खून
केवल साम्यवाद का
खून हें !
हे मित्र !
पारंपरिक क्रियाओ में
शिशु की प्रतिछारता
माँ के आँसुओं से
पूछो-
उसका धर्म,
आस्पताल में जूझते
जख्मियों से
उसके चोट का मर्म !
दिन - दहाड़े जाति के नाम पर
होता हुआ खून-ये खून -
न किसी जाती का हें
न किसी वर्ण का हें
ये खून
आदमियत का खून हें !
केवल
आदमियत का खून हें
हे मित्र !
इन रक्त -सने कपड़ो,
टिफिन में पड़ी रोटी ,
टूटी साईंकिलें ,
फटे जूते और चिथड़े
लिबास पर -
ये खून
केवल साम्यवाद का
खून हें !
हे मित्र !
पारंपरिक क्रियाओ में
शिशु की प्रतिछारता
माँ के आँसुओं से
पूछो-
उसका धर्म,
आस्पताल में जूझते
जख्मियों से पूछो -
उसके चोट का मर्म !
दिन - दहाड़े जाति के नाम पर
होता हुआ खून-

ये कविता रीना जी ने १९९९ में लिखी
इस कविता में रीना जी ने आज की इंसानियत के उपर काफी सजगता से वर्णन किया हे !
जो की नई दिल्ली से प्रकाशित पत्रिका (काव्य संग्रह)२००३ में प्रकाशित की गयी हे