| फागुनी रंग
 आज
 त्रष्णा के इस सफ़र में
 देहयष्टि की गंध
 मन की गंध
 निश्वास में भर देती है
 फागुनी रंग !.
 कोलाहल के ये क्षण
 आदिम उद्दाम के ये क्षण
 प्रश्नचिहिनका बनी हुई
 होली के रंग में जलकर
 मानव - अस्मिता में भर देती हे
 खुनी रंग
 फागुनी रंग का
 तीव्र प्रहार !
 निरंतर टूटते विश्वास
 म्रत्यु और जन्म का
 चिरंतन सत्य
 उदास पुरवाइयों में
 जीवन का इतिहास वन
 फागुन में जलाती है
 रातों की ख़ूनी होलिका!
 शब्दों की सामर्थ्य में
 | विकल नींदों का आलेख दुखों के मैले कुचैले
 जीर्ण - शीर्ण वस्त्र पहन
 पीठपीछेबंधेहाथमें
 हँसियाँ पकड़ कर
 कुटिल मन की श्र्जता में
 खुशियों को ढून्ढ निकालने के
 अर्थ में
 जीता अर्ध मानव
 होलिका दहन में झुलस कर
 स्व अस्तित्व को
 भूल जाता हैं !
 त्रष्णा के शहर में
 क्लिष्ट जीवन दर्शन - सा
 रक्त की सुर्ख सुनहली
 स्याही में लिखी गई
 फागुनोत्सव में आदमियत की
 कहानी
 एक दस्तक नहीं
 टेसुओं पर लगी आग की
 कहानी है!
 घ्रणा में टूटती
 अर्ध जरती मानवता
 | दर्प और अनास्था के महा समुद्र में जलती हुई
 हँसियाँ पकड़ कर
 कुटिल मन की श्र्जता में
 खुशियों को ढून्ढ निकालने के
 अर्थ में
 जीता अर्ध मानव
 होलिका दहन में झुलस कर
 स्व अस्तित्व को
 भूल जाता हैं !
 त्रष्णा के शहर में
 क्लिष्ट जीवन दर्शन - सा
 रक्त की सुर्ख सुनहली
 स्याही में लिखी गई
 फागुनोत्सव में आदमियत की
 कहानी
 एक दस्तक नहीं
 टेसुओं पर लगी आग की
 कहानी है!
 घ्रणा में टूटती
 अर्ध जरती मानवता
 दर्प और अनास्था के
 महा समुद्र में जलती हुई
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