| घर की तलाश में एक झूठा तिलिस्म
 मिलता है
 सीमेंट - बालू के समीकरण से बने
 सिर पर केवल
 अहसासों की एक छत
 जिसमें
 यात्राओं के लम्बे
 भयानक दौरे में
 आहत योद्धा को मिलता है
 एक बुझी हुई शाम का
 विश्राम शिविर !
 नहीं -
 मुझे पत्थरों की झूठी
 सवेंदनाओं का
 | गंधहीन , स्पर्शहीन अनुभूतियों की शून्यता का
 वह मरघट नहीं,
 अपितु
 फूलों की गंध से,
 बच्चे की कोमल पंखुरी- सी
 अनुभूतियों से खिलखिलाती
 प्यार का वह मजबूत तिनको से
 निर्मित -
 घोंसला चाहिए
 जहाँ -
 सांझ के झुरमुट में
 पखेरुओं का कलरव गान हो
 चोंच में चोंच डाले
 बतियाते हुए
 | बड़े दुःख और नन्हे सुख का भोग-
 यथार्थ की दुनिया में
 पंख पसारने की कल्पना लिए
 दाना-दाना चुनने की
 साम्यर्थ देता है बाप !
 बच्चे को खुली किताब से
 जीने की कला किताब से
 अभाव के तूफ़ान से
 हादसों के हाहाकार से
 ओलों की मार से
 जीने की कला सिखाता है वह बाप
 घर वही खुली किताब है
 घर है वही रिश्ते का अनुबंध
 
 |